Short Note On Global Warming

 

क्या है ग्लोबल वार्मिंग Global Warming ?

इसे संयोग कहें या नियोजित व्यवस्था की हमारी पृथ्वी अपने मुखिया सूर्य से उपयुक्त दूरी पर परिक्रमारत है। यदि यह दूरी थोड़ा कम या ज्यादा होती तो पृथ्वी पर जीवन संभव नहीं होता क्योंकि समस्त जीवन और वनस्पति अपने अस्तित्व के लिए सूर्य की ऊर्जा पर ही निर्भर है, लेकिन मानव जनित क्रियाकलापों के चलते जब हम सौर ऊर्जा की काफी मात्रा को अपने वायुमंडल में ही फंसा देते हैं तो खुद के लिए परेशानी भी पैदा कर देते हैं। दरअसल पृथ्वी की तरफ आने वाले सूर्य के प्रकाश का 30% हिस्सा बाह्य वायुमंडल द्वारा वापस मोड़कर अंतरिक्ष में छितरा दिया जाता है और शेष पृथ्वी की सतह तक पहुंचता है। पृथ्वी पर पहुंचा यह प्रकाश प्रत्यावर्ती होकर मंद गति से चलने वाली ‘अविरक्त विकिरण’ नामक ऊर्जा के रूप में ऊपर की ओर चला जाता है। वायु तरंगे इस अवरक्त विकिरण को ऊपर की ओर ले जाती हैं जहां जलवाष्प, कार्बन डाइऑक्साइड, ओजोन और मीथेन जैसी ‘ग्रीनहाउस गैसों’ द्वारा इसे फंसा दिया जाता है। ये गैसें वायुमंडल से विकिरण को नहीं निकलने देती और वहीं रह जाती है।

हालांकि ग्रीन हाउस गैसें पृथ्वी के वायुमंडल का मात्र 1% होती है, लेकिन ये गर्मी को फंसा कर पृथ्वी के चारों ओर गर्म हवा का एक कंबल जैसा बना देती हैं जो जलवायु को प्रभावित करता है। इसे ही वैज्ञानिक ‘ग्रीन हाउस प्रभाव’ कहते हैं। ग्रीन हाउस गैसों को भले ही आज पर्यावरण के संदर्भ में हिकारत से देखा जाता हो लेकिन सच तो यह है कि पृथ्वी को गर्म रखने के लिए यह बेहद जरूरी है। अगर ग्रीन हाउस गैसें और ग्रीन हाउस प्रभाव ना हो तो पृथ्वी पर तापमान 30 डिग्री सेल्सियस ठंडा हो जाएगा। इतने ठंडे वातावरण में जीवन का बने रहना संभव नहीं होगा।

ऐसे में पृथ्वी पर जीवन के लिए ग्रीन हाउस प्रभाव जहां जरूरी पर्यावरणीय शर्ता है, वहीं वायुमंडल में ज्यादा ग्रीन हाउस गैसों का जमा होना समूचे पारिस्थितिकीय तंत्र के लिए घातक भी है। समस्या तब पैदा होती है जब मानवीय गतिविधियां ज्यादा ग्रीन हाउस गैसें पैदा कर प्राकृतिक प्रक्रिया को विकृत कर देती हैं और पृथ्वी के आदर्श तापमान को बढ़ा देती है। पिछले डेढ़-दो सौ सालों से कोयला, तेल और प्राकृतिक गैसों के अंधाधुंध इस्तेमाल से वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर बढ़ रहा है जिसे आज ‘ग्लोबल वार्मिंग’ के तौर पर देखा जा रहा है।

ग्लोबल वार्मिंग के कारण (Global Warming is Caused By)

वायुमंडल में ग्रीन हाउस गैसों के बढ़ने के कई कारण है। तमाम फैक्ट्रियां लंबे समय तक टिकने वाली और औद्योगिक गैसें पैदा करती हैं। जो प्राकृतिक रूप से प्रकृति में नहीं होती और इस तरह ग्रीन हाउस प्रभाव बढ़ाती है। कुछ कृषि कार्य और जमीन के इस्तेमाल में आ रहा बदलाव मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड के स्तर को बढ़ा देते हैं। ग्लोबल वार्मिंग की एक वजह जंगलों का तेजी से खत्म होना भी है। पेड़ कार्बन डाई ऑक्साइड सोखते है और उसकी जगह ऑक्सीजन छोड़ते है। यह वायुमंडल में गैंसो को संतुलित बनाए रखने के लिए मददगार होते हैं। लेकिन खेती के लिए, लकड़ी के लिए, बस्तियां बसाने के लिए, तेजी से जंगल खत्म किए जा रहे हैं। जिससे पूरी पारिस्थितिकी संकट में आ गई है।

जनसंख्या वृद्धि ग्लोबल वार्मिंग का एक अन्य कारण है। जितने ज्यादा लोग, उतना जीवाश्म ईंधन और ऊर्जा का ज्यादा इस्तेमाल। हर साल तेजी से बढ़ रही जनसंख्या की उदर पूर्ति के लिए ज्यादा खेती की जरूरत है। जिसके चलते ज्यादा ग्रीनहाउस गैसे वायुमंडल में जमा हो रही है। वायुमंडल में जितनी ज्यादा मात्रा में वे विकिरण को फंसाएंगी जिससे धीरे-धीरे पृथ्वी की सतह का तापमान बढ़ेगा। मानवीय कारणों के अलावा सौर गतिविधियां और ज्वालामुखीयों के फूटने से होने वाले उत्सर्जन भी ग्लोबल वार्मिंग बढ़ाने में योगदान देते हैं। पृथ्वी का औसत तापमान बढ़ने की यही वजह है।

तेजी से बढ़ रहा है ग्लोबल वार्मिंग

ग्लोबल वार्मिंग किस रफ्तार से बढ़ रहा है, उसे इस बात से समझा जा सकता है कि बीसवीं सदी में औसत वैश्विक तापमान में 0.6 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है। वैज्ञानिकों ने जलवायु के कंप्यूटर मॉडल से निष्कर्ष निकाला है कि 2100 तक पृथ्वी के तापमान 1 डिग्री से 5.8 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो जाएगी। हालांकि कई वैज्ञानिक इससे सहमत नहीं है।

एक तरफ जहां बहुत सी ग्रीन हाउस गैसें प्राकृतिक तौर पर होती है और पृथ्वी को पर्याप्त गर्मी देने के लिए उनकी जरूरत होती है ताकि जीवन बना रह सके लेकिन जीवाश्म ईंधन के अत्यधिक इस्तेमाल के चलते वायुमंडल में अत्यधिक ग्रीन हाउस गैसों का मुख्य स्रोत बन गया है। कोयले से चलने वाले तापघर, फैक्ट्रियों से निकलने वाला धुआं, वाहनों के इस्तेमाल, फ्रीज, एयर कंडीशनों में प्रयोग होने वाली गैसें ग्लोबल वार्मिंग की खास वजहें है। इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि औद्योगिक युग के 150 साल के दौरान वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड का जमाव 31% तक बढ़ा है। इतने ही सालों में मुख्यता कृषि की गतिविधियों (पशुपालन और चावल उगाने) के चलते वायुमंडल में मीथेन का स्तर 151% तक बढ़ा है। वायुमंडल में फंसा विकिरण गर्मी के चलते जलवायु में बदलाव लाता है जिससे मौसम चक्र गड़बड़ा जाता है और जिसका प्रभाव पूरे परिस्थितिकीय तंत्र पर पड़ता है।

 

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