Operating System In Hindi

ऑपरेटिंग सिस्टम (Operating System)

ऑपरेटिंग सिस्टम, अनेकों छोट-छोटे प्रोग्राम्स का एक सेट होता है, जो कम्प्यूटर के विभिन्न हार्डवेयर रिसोर्सेस जैसे – मेमोरी, इनपुट/आउटपुट डिवाइसेस इत्यादि का प्रबन्धन करता है और कम्प्यूटर हार्डवेयर व यूजर के बीच एक इंटरफेस की भांति कार्य करता है।

MS DOS, UNIX, LINUX, WINDOWS 98, WINDOWS NT, WINDOWS 2000, WINDOWS XP, WINDOWS 7, WINDOWS 8 WINDOWS 10 इत्यादि ऑपरेटिंग सिस्टम
के कुछ उदाहरण है।

ऑपरेटिंग सिस्टम के मुख्य कार्य निम्नलिखित है-

  1. यह कम्प्युटर और यूजर के मध्य एक इंटरफेस स्थापित करता है, जिससे दोनों के बीच कम्यूनिकेशन सम्भव हो पाता है।
  2. यह सभी इनपुट / आउटपुट डिवाइसेज का प्रबंधन करता है।
  3. यह कंप्यूटर द्वारा सम्पादित होने वाले विभिन्न टास्कों को एलोकेट करता है।
  4. यह सिस्टम प्रोग्राम तथा यूजर के डेटा और प्रोग्राम को मेन मेमोरी तथा स्टोरेज एलोकेट करता है।
  5. यह सी.पी.यू द्वारा विभिन्न टास्को अर्थात जॉब्स के एक्सक्यूट करने के क्रम का निर्धारण भी करता है।
  6. यह विभिन्न डेटा और प्रोग्राम को मेमोरी में इस तरह से व्यवस्थित करके रखता है कि वे एक दूसरे से इंटरफेयर ना करें।
  7. यह कंप्यूटर सिस्टम और डेटा की एक्सेसिंग को अन्य यूजर से अर्थात् अनाधिकृत यूजर से सुरक्षित करता है

ऑपरेटिंग सिस्टम के प्रकार (Types of Operating System)

ऑपरेटिंग सिस्टम को निम्नलिखित तीन वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है-

  1. बैच ऑपरेटिंग सिस्टम (Batch Operating System)
  2. मल्टीप्रोग्रामिंग ऑपरेटिंग सिस्टम (Multi Programming Operating System)
  3. रियल टाइम ऑपरेटिंग सिस्टम (Real Time Operating System)
(1) बैच ऑपरेटिंग सिस्टम (Batch Operating System) – बैच ऑपरेटिंग सिस्टम, एक सिंगल यूजर ऑपरेटिंग सिस्टम होता है, जो यूजर द्वारा दिए गए जॉब्स को एक-एक करके बैच में एग्जिक्यूट करता है। जॉब्स को प्रोसेस करने के लिए विभिन्न यूजर अपने-अपने डेटा और प्रोग्राम को इसकों सौंप देते हैं। इसके पश्चात यह एक समान जॉब्स का अलग-अलग समूह बनाकर उन्हें एक साथ कंप्यूटर में लोड करता है। जब एक प्रोग्राम का एग्जीक्यूशन समाप्त हो जाता है तो अपडेटिंग सिस्टम दूसरे प्रोग्राम को एग्जीक्यूट करने के लिए लोड करता है। बैच ऑपरेटिंग सिस्टम एप्लीकेशंस के लिए उपयुक्त होता है, जिसमें कम्प्युटेशन टाइम अत्यधिक होता है और प्रोसेसिंग के दौरान यूजर के हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं होती है। पे-रोल प्रोसेसिंग भविष्यवाणी और सांख्यिकीय विश्लेषण ऐसे एप्लीकेशन के कुछ उदाहरण है।

(2)
मल्टीप्रोग्रामिंग ऑपरेटिंग सिस्टम (Multi Programming Operating System)
– मल्टीप्रोग्रामिंग ऑपरेटिंग सिस्टम एक साथ एक से अधिक प्रोग्राम अर्थात जॉब को लोड करके एग्जीक्यूट कर सकते हैं। मल्टीप्रोग्रामिंग ऑपरेटिंग सिस्टम के निम्नलिखित तीन स्वरूप है-

  1. मल्टी यूजर ऑपरेटिंग सिस्टम (Multiuser Operating System) – यह ऑपरेटिंग सिस्टम किसी कंप्यूटर सिस्टम के बीच रिसोर्स पर दो या दो से अधिक टर्मिनल के माध्यम से एक साथ एक्सेस करने की अनुमति सुविधा देता है। मल्टी यूजर ऑपरेटिंग सिस्टम का एक ज्वलंत उदाहरण है।

  2. मल्टीटास्किंग ऑपरेटिंग सिस्टम (Multi Tasking Operating System) – मल्टीटास्किंग ऑपरेटिंग सिस्टम को मल्टिप्रोसेसिंग ऑपरेटिंग सिस्टम भी कहा जाता है। मल्टीटास्किंग ऑपरेटिंग सिस्टम विभिन्न जॉब्स को एक साथ अधिक प्रोफ़ेसर पर एक साथ एग्जीक्यूट करते हैं अर्थात मल्टीटास्किंग ऑपरेटिंग सिस्टम्स, जॉब्स को एग्जीक्यूट करने के लिए एक से अधिक प्रोसेसर को हैंडल करते हैं। मल्टीटास्किंग ऑपरेटिंग सिस्टम, दो से अधिक प्रोसेस को एक साथ एग्जिक्यूट कर सकता है।
(3) टाइम शेयरिंग ऑपरेटिंग सिस्टम (Time Sharing Operating System) – यह ऑपरेटिंग सिस्टम क्विक रिस्पांस टाइम के साथ इन्ट्रैक्टिव मोड में कार्य करता है। इसके लिए इसमें टाइम शेयरिंग नामक तकनीक का प्रयोग किया जाता है। टाइम शेयरिंग में प्रत्येक यूजर को एक पूर्व निर्धारित क्रम में सी.पी.यू. को कुछ समय (एक निश्चित समय) के लिए एलोकेट किया जाता है तथा इस समय को टाइम-स्लाइस कहते हैं। एक टाइम-स्लाइस 10 से 100 मिली सेकंड का होता है। ऑपरेटिंग सिस्टम राउंड-रोबिन शेड्यूलिंग एल्गोरिथ्म का प्रयोग करते हुए प्रत्येक यूजर को एक टाइम-स्लाइस एलोकेट करता है। ज्योंही एक यूजर का एक टाइम-स्लाइस समाप्त होता है, ऑपरेटिंग सिस्टम द्वारा अगले यूज़र को एक टाइम-स्लाइस एलोकेट कर दिया जाता है।

रियल टाइम ऑपरेटिंग सिस्टम – रियल टाइम ऑपरेटिंग सिस्टम में प्रत्येक जॉब को प्रोसेस कर उसे संपादित करने की एक निश्चित समय अवधि होती है तथा उन्हें इस समयावधि के अंदर पूरा करना पड़ता है। रियल टाइम ऑपरेटिंग सिस्टम का प्रमुख उद्देश्य क्विक रिस्पांस टाइम का अत्यधिक उपयोग तथा यूजर का कार्य करना होता है। क्विक रिस्पांस टाइम प्रदान करने के लिए ज्यादातर समय मेन मोरी में प्रोसेसिंग होती रहती है। यदि कोई जॉब निर्धारित समयावधि के अंदर पूरा नहीं होता है, तो ऐसी स्थिति को डेडलाइन ओवररन कहा जाता है। रियल टाइम ऑपरेटिंग सिस्टम को डेडलाइन ओवररन जैसी परिस्थिति को कम से कम घटित होने देना चाहिए। फ्लाइट कंट्रोल और रियल टाइम सिमुलेशंस रियल टाइम एप्लीकेशन के उदाहरण है।
 
**********

Free Mock Tests Are Available Here

Scroll to Top
Scroll to Top