Holi Essay in Hindi

प्रस्तावना :- होली हमारे देश का प्राचीन पर्व है। इसमें नाच गान के साथ रंगों की भरमार होती है। इसको रंगोत्सव भी कहा जाता है। यह नए वर्ष के आगमन की सूचना देने वाला त्यौहार है। फाल्गुन का महीना बीतते-बीतते जाड़े का अंत हो जाता है। बसंत की शोभा अपने उत्कर्ष पर होती है। खेतों में फसलें अपने सुनहरे रंग से कृषकों के मन में उत्साह भर देती हैं। ऐसे आनंदमय वातावरण में होली का पर्व मनाया जाता है।

समय :- होली का पर्व फाल्गुन मास की पूर्णिमा को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इस समय मौसम बड़ा सुहावना होता है। मनोरम वातावरण में सभी लोग उमंग और मस्ती के साथ इस पर्व को मनाते हैं। इस समय एक ऋतुराज बसंत का आगमन हो जाता है। चारों ओर खेतों में सरसों के पीले फूल दिखाई पड़ते हैं। प्रकृति का रंगीन वातावरण नई उमंगे लेकर आता है। भारतीयों ने इस रंगीन मौसम में होली का त्योहार मनाना आरंभ किया। इसलिए इसे ‘रंगोत्सव’ भी कहा जाता है।

मनाने का कारण :- भारतीय त्योहारों को मनाने के पीछे कोई न कोई कारण अवश्य होता है। लोक में प्रचलित है कि राजा हिरण्यकश्यप बड़ा प्रतापी राजा था, किंतु उतना ही अहंकारी भी। वह भगवान का सदैव विरोध करता था। स्वयं को ईश्वर से बड़ा मानता था। वह चाहता था कि प्रजा उसकी पूजा करें। उसका पुत्र प्रहलाद भगवान का भक्त था। प्रहलाद को बाल्यकाल में सच-झूठ की पहचान हो गई थी। प्रह्लाद ने कहा था – भगवान से बढ़कर कोई दूसरा नहीं हो सकता है। माता-पिता आदर के पात्र हैं, परंतु भक्ति केवल भगवान की हो सकती है। इससे राजा हिरण्यकश्यप अपने पुत्र से नाराज हो गए। उन्हें पुत्र के उपदेश अच्छे नहीं लगे। वे प्रह्लाद को मारने का प्रयास करने लगे। अनेक बार असफल हो जाने के कारण उन्होंने अपनी बहिन होलिका से सहायता करने को कहा। होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह अग्नि में नहीं जलेगी। होलिका अपने इस वरदान के घमंड में प्रहलाद को गोद में लेकर जलती लकड़ियों के ढेर पर बैठ गई। किंतु आग से प्रहलाद कुशलतापूर्वक बाहर आ गए। होलिका उसी आग में भस्म हो गई। इस प्रकार असत्य और न्याय पर सत्य और भक्ति की विजय के उपलक्ष्य में हर वर्ष होली का पर्व मनाया जाता है।

होली का पर्व जिस कारण भी प्रारंभ हुआ हो, इसमें संदेह नहीं है कि वह हमारा प्राचीन पर्व है। अनेक पुराणों एवं साहित्य ग्रंथों में इसके मनाये जाने का वर्णन मिलता है। इस त्योहार की सबसे बड़ी विशेषता इससे जुड़ा राग-रंग है। यह संपूर्ण जनता का त्यौहार है। इसमें धर्म, पूजा-अर्चना और विधिविधान का उतना महत्व नहीं है, जितना महत्व गाने-बजाने एवं अबीर-गुलाल उड़ाने, खाने-पीने का और हर एक के साथ गले मिलने का है। वास्तव में होली हमारे देश का राष्ट्रीय पर्व है।

मनाने की विधि :- इस पर्व का आरंभ होली के पांच-छह दिन पूर्व होली एकादशी से होता है। बच्चे इसी दिन से एक-दूसरे पर रंग डालना आरंभ कर देते हैं। पूर्णिमा के दिन खुले मैदान में ईंधन व उपलों का ढेर लगाया जाता है। स्त्रियां दोपहर के समय इसका पूजन करती हैं। दिन में पकवान आदि बनाए जाते हैं। रात्रि को एक निश्चित समय पर इसमें आग लगाई जाती है। इसमें सभी लोग गेहूं, जौ, चना आदि की अधपकी बालें भूनतें हैं, फिर एक-दूसरे से गले मिलते हैं।

होली के दूसरे दिन प्रातः काल लोग अबीर-गुलाल एवं रंगों से होली खेलना प्रारंभ कर देते हैं। बच्चे पिचकारीय़ों से रंग फेकतें है तथा गुलाल लगाते हैं। गले मिलते हैं एवं अत्यंत प्रसन्नता का अनुभव करते हैं। टोलियां बनाकर नाचते-गाते हैं, मौज-मस्ती करते है। दोपहर बाद सब लोग स्नान कर वस्त्र धारण करते है। एक-दूसरे से मिलने के लिए निकल पड़ते हैं। वास्तव में होली का पर्व प्रसन्नता से मनाया जाता है।

दोष :- कुछ लोग होली को बड़े गलत ढंग से मनाते हैं। इस दिन शराब पीकर नृत्य करते हैं। कुछ लोग एक-दूसरे के कपड़े फाड़ देते हैं और कुछ गंदे काले-पीले रोगन, कीचड़ आदि लगा देते हैं, जो बहुत दोषपूर्ण है। इस प्रकार की बुराइयों का समावेश इस रंगीले त्यौहार में नहीं होना चाहिए।

उपसंहार :- वास्तव में होली का पर्व रंगों का पर्व है। यह त्योहार प्रसन्नता एवं उमंग, उत्साह, उल्लास एवं सद्भावना का पर्व है। सभी लोग गले मिलते हैं। यह एकता और भाईचारे को बढ़ाने वाला त्यौहार है। मनुष्यों के प्रेम और प्यार का प्रतीक पर्व है। इसमें आ जाने वाली बुराइयों को त्याग कर हमें अच्छे तरीके से होली का त्यौहार मनाना चाहिए।

 

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